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जब से जग में जिन्दगी, हुई नशे में चूर l
हिंसा-बैर समा गया, हम सब मैं भरपूर ll
करना नहीं गुमान को , धरती के इंसान l
चार दिनों की जिंदगी , क्यों करता अभिमान ll
अग्रज से आशीष लो , दो अनुजों को प्यार l
आपस के सम्मान की ,चलती रहे बयार ll
तेरा मेरा कुछ नहीं , यह संसार-असार l
नहीं जाएगा साथ कुछ , कर ले जरा विचार ll
रूप-रंग की रोशनी , सबको प्यारी होय l
मीठी वाणी को रखो , नहीं पराया कोय ll
दो दिन की है जिंदगी ,करना नहीं गुमान l
बैर किसी से मत करो ,सबका करना मान ll
ईश्वर ने हमको दिया , यह शरीर अनमोल l
ध़ड़कन के बिन है नहीं , काया का कुछ मोल ll
दौलत-धरती-धाम पर, करना नहीं गुमान l
माटी की इस देह पर, करता क्यों अभिमान ll
राधे
गोपाल
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Saturday, 25 November 2017
दोहे "करता क्यों अभिमान" (राधा तिवारी)
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