Wednesday, 6 December 2017

कविता "तुम मेरे मम्मी-पापा हो" (राधा तिवारी)

तुम मेरे मम्मी-पापा हो,
यह मैं सब से कहती हूँ।
हर पल हर क्षण मेरे पापा,
आप के दिल में रहती हूं।।

मेरे आने की आहट से,
तुम कैसे खिल जाते हो।
मेरे दुख पीड़ा के क्षण में,
तुम पहले मिल जाते हो।।

मेरे दुख से दुखी हो जाते,
सुख तुमको लगता प्यारा।
कितने रिश्ते हैं इस जग में,
पर यह है सबसे न्यारा।।

राधा गोद खिलाई तुमने,
उसको प्यार से पाला।  
जग की सारी खुशियां दी,
और अपना दिया निवाला।।

होकर बड़ी स्वयं को मैं,
पाती हूं अब भी मुनिया।
मम्मी-पापा में बसती है,
मेरी सारी दुनिया।।

Saturday, 2 December 2017

गीत "तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं" (राधा तिवारी)

तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं तुम्हें दिल में बसा लूं मैं
तुम्हारे ख्वाब में आकर के तुम्हें थोड़ा हंसा दूं मैं

तेरे कदमों की आहट से ये दिल बेचैन होता है
तुम्हें ना देखता है तो स्वयं का चैन खोता है
तेरे आगोश में आकर तुझे अपना बना लूं मैं
बना कर मुरलिया तुझको करीने से सजा लूँ मैं
तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं तुम्हें दिल में बसा लूं मैं

हमारे नयन में होगा तुम्हारे दर्द का सागर
तुम्हारी ही हँसी से तो भरेगी प्यार की गागर
कभी घर के झरोखे से, तुम्हें छिपकर निहारुँ में ।
कभी आँखों की पलकों पर ,तुम्हें दिलवर बिठा लूं मैं ।।
तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं तुम्हें दिल में बसा लूं मैं

कभी पाकर के खो जाऊं, कभी खोकर के पाऊँ मैं।
कभी तुमको बुला लूंगी कभी खुद चलके आऊँ मैं ।।
घनी जुल्फों के साये में, कभी तुमको बिठालूँ मै।
तुम्हें देखूं तुम्हें छूलूं, तुम्हें दिल में बसा लूँ मैं।।

Saturday, 25 November 2017

दोहे "करता क्यों अभिमान" (राधा तिवारी)

जब से जग में जिन्दगी, हुई नशे में चूर l 
हिंसा-बैर समा गया, हम सब मैं भरपूर ll

 करना नहीं गुमान को , धरती के इंसान l
 चार दिनों की जिंदगी , क्यों करता अभिमान ll

अग्रज से आशीष लो , दो अनुजों को प्यार l
 आपस के सम्मान की ,चलती रहे  बयार ll

 तेरा मेरा कुछ नहीं , यह संसार-असार l
 नहीं जाएगा साथ कुछ , कर ले जरा विचार ll

 रूप-रंग की रोशनी , सबको प्यारी होय l
 मीठी वाणी को रखो , नहीं पराया कोय ll

दो  दिन की है जिंदगी  ,करना नहीं गुमान l
 बैर किसी से मत करो ,सबका करना मान ll

ईश्वर ने हमको दिया , यह शरीर अनमोल l
ध़ड़कन के बिन है नहीं , काया का कुछ मोल ll

दौलत-धरती-धाम परकरना नहीं गुमान l
 माटी की इस देह पर, करता क्यों अभिमान  ll

राधे गोपाल

Saturday, 18 November 2017

दोहे "नारी बहुत अनूप" (राधा तिवारी)

साड़ी में अच्छी लगे
भारत की हर नार।
नारि-जाति के साथ में
करना शुभ व्यवहार।।


कोमलांगी कहते इसे
शक्ति का यह रुप।
खुश रहती हर हाल में
नारी बहुत अनूप।।

बालों का जूड़ा बना, करती है सिंगार।
सजनी साजन को करे, खुद से ज्यादा प्यार।।

सिंदूरी हर माँग में , है साजन का प्यार ।
कंगन-पायल, चूड़ियाँ, छनकाती हर बार।।

कानों में झुमकी सजे, पायल बिछिया पाव ।
हंसी-खुशी चलती रहे , उसकी जीवन नाव।।

दो नैनों में है बसा ,साजन का ही प्यार।
नैनो में काजल लगा, हरसाती हर बार।।

सुंदर लगती नार है , गोद खिलाती लाल।
राधे का तो एक ही, है साजन गोपाल।।
(राधे-गोपाल)

Friday, 10 November 2017

कविता "मां मैं तेरा बछड़ा हूँ" (राधा तिवारी)

भूखा हूं मैं मेरी मैया ,
मुझको भी कुछ खिलवादो।
इंसानों से कहकर मैया,
मुझको भी दूद्धू पिलवादो ।।

मां मैं तेरा बछड़ा हूं ,
दूध पे मेरा हक है ।
दूध यह सारा ले लेते हैं,
मुझको इन पर शक है।।

बेचा करते दूध दही,
पनीर मिष्ठान बनाते।
पर मेरे हिस्से का दुदु,
मुझको नहीं पिलाते।।

घास हरा मां तुमको देते,
और मुझे सूखा चारा।
खा लेता हूं चुपचाप मां,
मैं इतना बेचारा।।

मुंह दुखता है डंठल खाकर,
गले पर पड़ते छाले।
मेरे हिस्से का दूध छीन कर,
इनने अपने बच्चे पाले।।

जब बड़ा हो जाऊंगा,
मैं खेत में काम करूंगा।
हल पर लद कर,
माँ तेरा नाम करुंगा।।

अनाज बहुत होगा वहां,
पर हम को नहीं मिलेगा।
तू ही बता मां ऐसे इंसान को,
कैसे पुण्य मिलेगा।।