Monday, 4 June 2018

सीँचना प्यारा चमन (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")

गज़ल 
सीँचना प्यारा चमन


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वीर सैनिक देश के तुमको दिया हमने वतन।
 देखभाल करना सदा सीँचना प्यारा चमन ।।

कभी भूल नहीं पाएंगे हम वीरों के बलिदान को।
 जिनने प्राण दे कर दिया है वतन को चैन और अमन।।

 काम नहीं कोई असंभव करना तेरे वास्ते ।
धरा पर रखकर कदम छूना विचारों से गगन ।।

तपोभूमि है यह धरा गौतम बुद्ध ने जन्म लिया।
 करते हैं मंत्र साधना होकर यहां साधु मगन।।

 दे रही आशीष राधे अपने वीर जवानों को ।
देश रक्षा की हमेशा कम ना हो वीरों लगन।।

Sunday, 3 June 2018

इस वतन के वास्ते (राधातिवारी "राधेगोपाल")

इस वतन के वास्ते
चल पडो तब रुक न जाना देख कर यह रास्ते l
अब तुम्हे चलना ही होगा इस वतन के वास्ते”

 हार हो या जीत हो, या जान मुश्किल में कभी ।
जान -ए-दिल कुर्बान करना, इस वतन के वास्ते ।।

 वक्त हो कैसा भी तुम, डर कर कभी रुकना नहीं ।
कदम तो बढ़ते रहें, अपने वतन के वास्ते ।।

सर्दी गर्मी धूप हो, चाहे हवा प्रतिकूल हो ।
पर्वतों को भी लाँघ जाना, तुम वतन के वास्ते।

 दूध माता का पिया है , कर्ज तो उसका चुका।
 फर्ज है बलिदान होगा ,  वतन के वास्ते ।।

शत्रु से डरकर सरहद से, भागकर आना नहीं ।
कह रही राधे कटाना, सिर वतन के वास्ते ।। 

देखो वतन के वास्ते (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")

देखो वतन के वास्ते
रूप इंसा का मिला जब चलना तू सच्चे रास्ते।
 आएंगे कितने ही संकट देख तेरे वास्ते।।

 गर्व से तू चल रहा है देख सीना तान के ।
सोच कैसे जी रहे मां-बाप तेरे वास्ते ।।

सो रहे सब चैन से होली दिवाली मन रही।
 सर कटाते अपने सैनिक देखो वतन के वास्ते ।।

लिख रहे हैं गीत गजलें और जो दोहे सभी ।
हो नमन उन शायरों को लिखते जो तेरे वास्ते ।।

चुन रही है  शूल राधा रास्ते से हर समय।
 राह में हरदम बिछाए फूल तेरे वास्ते।।

Saturday, 2 June 2018

गज़ल " इमारत "( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")

गज़ल " इमारत "
दिखाई कब दिए किसी  को कभी बुनियाद के पत्थर।
 वाहवाही तो मिलती है इमारत को यहां अक्सर।।

 धन से कभी ना आँकना इंसान को यहां ।
फकीर बन कर जाते हैं जहान से अक्सर ।।

तन का नहीं है मोल तू बस काम करते जा।
 मिट्टी के मोल जाता है इंसान तो अक्सर ।।

महलों को सजाना तू जरा देखभाल कर।
 पलभर में चूर होते  यहाँ पर ख्वाब है अक्सर।।

 अपने पराए साथ में रखना तुम इस कदर ।
अपनों ने राधे थामें है हाथ यह अक्सर।।

लहलहाते खेत (राधातिवारी "राधेगोपाल")








लहलहाते खेत



 शस्य श्यामला  है धरा ,ये  मेरे हिंदुस्तान की।
 वीणापाणि है बजाती, ताल लय सुर तान की ।।

लहलहाते खेत में ,झुकती फलों की डालियाँ।
नीर से परिपूर्ण झरने ,शान हिंदुस्तान की।।

 वादी- ए- कश्मीर में ही, फूल कितने हैं खिले ।
हाथ में दो सैनिकों के, कमान हिंदुस्तान की ।।

शीश जब झुक जाएंगे ,माता-पिता के सामने।
 तब कहेगी देवता, संतान हिंदुस्तान की।।

 गाते रहे हैं शान से, हम कुदरती सौंदर्य को ।
राधे कहे शायर सदा ,है जान हिंदुस्तान की।।

















दो जून की रोटी ( राधा तिवारी " राधेगोपाल " )



 दो जून की रोटी


 बस चार दिन की जिंदगी होती बहुत छोटी।
 मय्यस्सर हो सभी को यहाँ दो जून की रोटी।।

है किस्मत कौन सी पाई जो करते काम खेतों में ।
भिगोया तन गरीबों ने मिली  दो जून की रोटी।।

 देश की खातिर सैनिक ने घर बार छोड़ा है।
 सुख चैन से खाते नहीं  दो जून की रोटी ।।

कहते हैं वो बड़ा है उसके महल है कई ।
नींद रातों की गवाँई पाने  दो जून की रोटी।।

 मेरिट  में आ रहे  हैं मेरे  देश  के बच्चे ।
पढ़ाई के लिए छोड़ दी  दो जून की रोटी ।।

'राधे' करें मेहनत सभी इस पेट के लिए ।
फिर भी नहीं मिलती कभी  दो जून की रोटी।।









Friday, 1 June 2018

तुम्हारा संग (राधातिवारी "राधेगोपाल")






                            तुम्हारा संग




मेरे जीवन की नदियां में तुम्हारा संग किनारा है
 अगर तूफान भी आ जाए तेरा संग लगता प्यारा है
तुम्हारे वास्ते ही तो छनकती पाँव की पायल
कंगना भी मेरे प्रियतम  मुझे करते इशारा है
तेरी हर एक अदा पर तो बलिहारी मैं जाती हूं
तेरा दिल हो कर तेरा भी मगर लगता हमारा है
 सितम दुनिया के ये सारे मैं हंस के पार कर लूंगी
मगर तेरी अदाओं पर तो दिल हरदम ही हारा है
जगत में ढूंढती गोविंद सदा मीरा बनी राधे
 मेरा गोपाल तो सारे जग से न्यारा है