विषय गीत कमल नयन छूकर कमल मंद मंद मुस्काती है बैठ नदी के बीच कमल को देख अरे इठलाती है नई नवेली नार सोचती है मन में इतना सुंदर फूल बसा है नैनन में तितली तो रसपान इसी का करती है देख देख के नार आह ये भरती है।। कोमल पंखुड़ियों को बैठी, चंद्रबदिनि सहलाती है। बैठ नदी के बीच कमल को देख अरे इठलाती है।। अपने सपनो को वह पंख लगा बैठी। वह आकंठ उन्ही सपनो मे जा पैठी।। तितली उसकी सखियाँ भौंरे मीत बने। हृद स्पंदन स्वर उसके मृदु गीत बने।। सुघर कामिनी मृग नयनी निज पिय को आज बुलाती है।। बैठ नदी के बीच कमल को देख अरे इठलाती है।। राधा तिवारी"राधेगोपाल" खटीमा उधम सिंह नगर उत्तराखंड |
Monday, 19 September 2022
राधा तिवारी "राधेगोपाल", "गीत" , कमल नयन
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