राधे के अनमोल दोहे लिखकर राजा राम का, पत्थर पर है नाम । सेतु बना कर कर रहे, हनुमत अपना काम।। घर में सब रहने लगे, करने को आराम, दिनचर्या तो थम गई ,मचा आज कुहराम।। जंगल में जो आग थी, उस पर लगा विराम। जला रहे थे आग जो,वो करते आराम।। कहे बीमारी आप तो, हम कहते त्यौहार ।। आप कहे संहार हैं, हम कहते संसार।। शुद्ध हुआ वातावरण, शुद्ध नदी का नीर । सब अपने घर बंद हैं, पूछें किसकी पीर।। बरछी ढाल कृपाण ले, करती सेना युद्ध। श्रीराम रण भूमि में ,हुए कभी न क्रुद्ध।। सड़कें सारी व्यस्त थी, करती थी जो शोर। वाहन सारे थम गए, वह भी हो गई बोर।। कहते सब आजाद थे ,पहले हम और आप। जीवों पर सब ने किया, देखो कितना पाप।। शुद्ध हुआ वातावरण, ताजी चले समीर। जीव जंतु की अब यहाँ, बदली है तकदीर।। डरा रहा सबको यहाँ, जीवन पल पल आज। रोक रही है मौत तो, सबके अब तो काज।। सुना रहे पक्षी सभी, मधुर मधुर संगीत। भूल गए हैं आज तो, वो बिरहा के गीत।। तितली भी इतरा रही ,जा फूलों के पास। भँवरे भी करने लगे, अब कलियों की आस।। जीव जंतु जग के सभी, घूम रहे हो मस्त। इंसानों का सूर्य तो, होने लगा है अस्त।। राधा तिवारी"राधेगोपाल" खटीमा उधम सिंह नगर उत्खेतराखंड |
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