विज्ञात के साक्षात्कार
परम श्रद्धेय संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा लिया गया हमारा साक्षात्कार
प्रश्न 1
वैसे तो आप किसी परिचय के मोहताज नहीं
है। लेकिन फिर भी हमारे पाठक आपका परिचय आपके शब्दों में जानना चाहते हैं?
नमस्कार जी
1 मैं राधा तिवारी“राधेगोपाल” जोधपुर राजस्थान से हूँ। वहीं से
मेरी प्रारंभिक शिक्षा हुई है।MA इंग्लिश तक मैंने अंग्रेजी माध्यम से
शिक्षा ग्रहण की ।मेरे पिताजी डॉ भोला दत्त पांडेय, माताजी श्रीमती आनंदी पांडेय
है।मूल रूप से हम अल्मोड़ा रानीखेत के पांडेय हैं और मेरा विवाह खटीमा में(कालुखान)के
श्री गोपाल दत्त तिवारी पुत्र( श्री पूर्णा नन्द तिवारी और श्रीमती आनंदी तिवारी)
जी से वर्ष 1992 में हुआ था।
प्रश्न 2
फिर साहित्य के प्रति आपकी रुचि कैसे
जागृत हुई?
2 देखिए साहित्य तो शायद मेरे रग रग में छिपा हुआ था ।मेरी माता
जी एक अच्छी लेखिका थी लेकिन उन्होंने कभी भी अपने शब्दों को किताबों में, कागजों
पर नहीं उतारा बल्कि जब हमें कुछ चाहिए होता था तो वह तुरंत आशु कवियत्री के रूप
में हमें कविता लिख कर के दे देती थी। मेरी मम्मी के आशीर्वाद को मैं कभी नहीं भूलुंगी
माता पिता का आशीर्वाद मेरे साथ में पग पग पर रहा है और भगवान से प्रार्थना करूंगी
कि हमेशा रहेगा।
कक्षा दो से मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू
की और लगभग तीन-चार वर्षों में लगभग 1000
कहानी लिखने के बाद मेरा मन कविताओं की
तरफ मुड़ गया क्योंकि कविताओं में बहुत कम समय में हम कविता को रच लेते हैं और एक
बार काव्य में कदम रखने के बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
प्रश्न 3
साहित्य से पृथक अभिरुचि के विषय क्या
क्या हैं ?
3 विशेष अभिरुचियों की बात है तो मुझे खेल का बहुत शौक था और
बचपन से ही मैं खेल के प्रति भी काफी सजग रहती थी ।मैं विद्यालय में हर खेल में
प्रतिभाग करती थी और इसके अलावा सीखने की रुचि मुझ में बहुत ज्यादा है, बुलबुल,
गाइड और बाद में एनसीसी ले करके मैं अपने हर सपने को पूरा करती रही। मुझे एनसीसी “सी”
सर्टिफिकेट प्राप्त है इसके अलावा मैंने पैरासेलिंग भी की है और आर्मी विंग में पॉइंट
टू टू और
एयर विंग में मैंने थ्री नोट थ्री रायफिल से कितने ही निशाने साधे,और मैं एक
विद्यार्थी की तरह आज भी सीखने को हमेशा तत्पर रहती हूँ।
प्रश्न 4
आपकी पसंदीदा विद्या कौन सी है, जिसमें
आप ज्यादा लिखना पसंद करते है?
4 देखिए जिस तरह से एक माँ को अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं उसी
प्रकार मुझे लेखन की हर शैली प्रिय है लेकिन फिर भी जब मैं कोई रचना लिखने बैठती
हूँ तो अनायास ही अप्रत्यक्ष रूप से वह दोहे का रूप ले लेती है और मैं अनगिनत
दोहों को दिन भर में रच लेती हूँ।
प्रश्न 5
साहित्य की एक वह विशेष बात क्या रही
जिसने आप को सबसे अधिक आकर्षक किया?
5 देखिए अंग्रेजी साहित्य से पढ़ना और अंग्रेजी साहित्य की ही
शिक्षिका होने के बावजूद भी मुझे हिंदी के प्रति इतना लगाव है कि मैं हिंदी
साहित्य में पूरी तरह से अपने आप को ढाल
चुकी हूँ मैं साहित्य के क्षेत्र में
लेखन कार्य कर रही हूँ और इसके लिए मैं श्रीमान संजय कौशिक विज्ञात जी को भी
धन्यवाद देना चाहुँगी जिन्होंने मुझे व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा और हिंदी के प्रति
मेरी लगन बढ़ती गई और हिंदी और अहिंदी शब्दों में भेद भी मुझे पता चलने लगे।हिंदी
मेरी मातृभाषा है और इसका प्यार,इसकी शालीनता और मीठे शब्द मुझे अपनी ओर
आकर्षित करते हैं।
प्रश्न 6
आप अपनी सशक्त लेखनी के लिए जिम्मेदार
किसको मानते हैं अर्थात प्रेरणा स्रोत किसे मानते हैं?
6 लिखने का शौक तो मुझे बचपन से था। शादी होने के बाद भी मैं
लिखती रही लेकिन मुझे उपयुक्त मंच नहीं मिला। फिर वर्ष
2008 में मैं अति दुर्गम क्षेत्र में सरकारी अंग्रेजी अध्यापिका की सेवा देने रा ई का रीठाखाल,चम्पावत चली गई और 2017 तक साहित्य के संसार से दूर हो गई।
2017 में मेरी पोस्टिंग जब खटीमा हुई तो वहाँ मुझे “शैलेश मटियानी पुरस्कार
“प्राप्त डॉ महेंद्र प्रताप पांडेय" नंद" जी से मुलाकात करने का मौका
मिला।
आपने मेरी कला और मेरी जिज्ञासा को
देखते हुए मुझे आगे बढ़ाया, मुझे गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने
का मौका मिला और तब मुझे "युवा प्रतिभा सम्मान" ओर "नव सप्तक
सम्मान" से सम्मानित किया गया। मेरी एक साझा पुस्तक नव सप्तक निकली।
उसके बाद मैंने खटीमा में देखा कि डॉ
रूपचंद शास्त्री "मयंक"जो कि एक महान लेखक है और लेखन के क्षेत्र में
उनका नाम है वे नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहित करते हैं और उनके साथ मैंने लगभग 20 वर्ष
पहले भी कई कवि सम्मेलन किये थे तो मैं उनसे मिली उन्होंने मेरी जिज्ञासा को देखते
हुए मेरे रचनाओं को ठीक करना आरंभ किया। मुझे लेखन के गुर बताए और उनके साथ रहकर
के मेरा लेखन के प्रति और दोहों के प्रति मेरा रुझान बढ़ गया और मैं
आगे बढ़ने लगी।।
प्रश्न 7
आपके जीवन में ऐसी कोई घटना विशेष घटना
जो प्रेरणादायक रही है और आप उसे गर्व से साझा करना चाहते हैं?
7 देखी मैं आकाशवाणी जोधपुर में “ युववाणी”
कार्यक्रम में कंपेयरर थी इसके अलावा मैं आकाशवाणी जोधपुर में ही अनेक लघु
कथा ,लेख और कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करती रहती थी। मुझे शैलेश लोढ़ा जी जो उस
समय जोधपुर में ही रहते थे के साथ भी काम करने का मौका मिला था, जो
आजकल टीवी पर 'वाह वाह क्या बात है'
और 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' में
आते हैं । यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है कि मैं उनके साथ काम कर चुकी हूँ।
अब वर्ष 2017
में गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर
काव्य पाठ करने करना और "युवा प्रतिभा सम्मान" ओर "नव सप्तक
सम्मान" से सम्मानित होना मेरे लिए गौरव की बात थी।
प्रश्न 8
आपको क्या लगता है एक लेखक की कलम का
उद्देश्य आत्मसुखाय चलना सही है या साहित्य और समाज कल्याण करते हुए?
8 एक लेखक की कलम का उद्देश्य साहित्य और समाज कल्याण के कार्य
करना होना चाहिए। लेखनी में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी कार्य को सिद्ध कर
देती है। लेखक लिखते तो आत्म सुख के लिए ही है लेकिन जब लेखनी समाज सुधार का बीड़ा
भी उठा लेती है तो वह धन्य हो जाती है।
अब देखिए मैंने खटीमा की टूटी
फूटी सड़को , गंदगी और कूड़े के ढेर
को,
हेलमेट पहनना क्यों जरूरी है इसके अच्छे
बुरे परिणाम मैंने सबसे पहले अपनी कविता के माध्यम से खटीमा की जनता तक अखबार के
माध्यम से पहुँचाया था।
मुझे ख़ुशी हुई जब सडकें ठीक हुई ।कूड़ा
गाडी घर घर से कूड़ा उठाने लगी।खटीमा शहर स्वच्छता की ओर बढ़ा और हेलमेट पर भी पुलिस
का ध्यान गया। परिणाम स्वरुप मेरी जनता का जीवन सुरक्षित हुआ । कहीं ना कहीं समाज
के कामों को हमारी लेखनी सशक्त करती है ।खटीमा से प्रकाशित होने वाले अखबारों
विशेष कर 'खटीमा मॉर्निंग'
और 'देव भूमि का मर्म ' आदि
ने मुझे काफी सहयोग किया।
प्रश्न 9
आपकी रचनाओं में साहित्य की लुप्तप्राय
समृद्ध शब्दावलियों के साथ-साथ आँचलिक भाषा का समन्वय मिलता है, आप
इस पर क्या कहेंगे?
9 इसका श्रेय तो मैं पूरी तरह से श्री संजय कौशिक विज्ञात जी को
देती हूँ जिन्होंने हमें केवल और केवल हिंदी साहित्य के प्रति जागृत किया।
प्रश्न 10
एक साहित्यकार के रुप में आपके मित्र और
परिवार के लोग आपको कितना पंसद करते है
10 जब हमारा नाम किसी क्षेत्र में होता है तो वह अपने परिवार और
मित्रों के कारण ही होता है। मेरे मित्र तो बहुत खुश होते हैं परिवार भी मेरे साथ
में है विशेष रूप से मुझे साथ मेरे पतिदेव श्री गोपाल दत्त तिवारी जी का मिला है
क्योंकि एक पत्नी के लिए पति का साथ बहुत जरूरी है और उन्होंने कभी भी मेरे लेखन
कार्य में रुकावट पैदा ना करके मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया है और उन्हीं के कारण
मेरी पुस्तकें 'जीवन का भूगोल'
(दोहा
संग्रह) और 'सृजन
कुंज'( काव्य संग्रह) 'राधे की अंजुमन' (ग़ज़ल
संग्रह)प्रकाशित हुई और आप सबके बीच में हैं।
प्रश्न 11
आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रति आप क्या
दृष्टिकोण रखते हैं? आपके विचार से साहित्य को और समृद्ध बनाने के लिए क्या क़दम
उठाया जाना चाहिए?
11 हिंदी साहित्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल ठीक है। मैं
चाहती हूँ कि आने वाली पीढ़ी हिंदी के प्रति और सजग हो। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा
है और राष्ट्रभाषा ही रहे। यह विलुप्त ना हो और हमें अपने प्रत्येक कार्य हिंदी
में ही करनी चाहिए। इसके लिए हमें एक विशेष मुहिम चलानी चाहिए जिसमें सिर्फ और
सिर्फ हिंदी का उत्थान हो।
प्रश्न 12
क्या अब तक आपकी कोई साहित्यिक पुस्तक
प्रकाशित हुई है?यदि छपी है तो उसके विषय में भी कुछ बताएं।
12 जी हाँ मेरी तीन एकल पुस्तकें अभी तक छपी है। "जीवन का
भूगोल" (दोहा संग्रह), "सृजन कुंज"( काव्य संग्रह),"राधे की अंजुमन" (ग़ज़ल संग्रह),।
इसके अलावा 6 से 7
(साझा संग्रह)हाइकू ,दोहा ,कुण्डलियाँ
,गीत,कविताएँ भी मेरे निकले हैं और अभी 7 8 पुस्तकें
मेरी प्रकाशित होने की कतार पर है।
प्रश्न 13
जो नए लेखक या कवि आ रहे हैं उनके लिए
आपका दृष्टिकोण? उनके लिए क्या सन्देश देना चाहेंगे?
13 नवोदित रचनाकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे लेखन में
अपनी भाषा को स्पष्ट रखें ,शुद्ध हिंदी भाषा का प्रयोग करें, बड़े
लेखक और रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ें ।
आप जितना पढ़ेंगे उतना ही आप अच्छा लिख
पाएंगे। बुरे लेख से बचें, कटाक्ष नहीं करें,
देशद्रोह की बातें ना लिखिए, ह्रदय
पर घात करने वाली शब्दों का प्रयोग ना करें। पढ़िए ज्यादा लिखिए कम ,जितना
भी लिखें सोच समझकर सशक्त लिखें।
प्रश्न 14
हमारे लिए कोई दिशा निर्देश देना चाहें
तो स्वागत है
14 आपको कुछ बोलना सूरज को दिया दिखने जैसा होगा।
आप जो भी कार्य कर रहे हैं बहुत अच्छा
कर रहे हैं ।हिंदी को बढ़ाने में आपका योगदान अमूल्य है। आपको और आपकी लेखनी को, आपकी
भावनाओं को मैं शत-शत नमन करती हूँ आप यूँ ही विश्व पटल पर छाए रहे ।दीर्घायु हों
और अभी इस समय जो हमारे देश में महामारी आई है ईश्वर हम सबको से बचाए रखें। लेखको
की कलम चलती रहे ।
धन्यवाद