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Monday, 19 September 2022

राधा तिवारी राधेगोपाल , राधे के अनमोल दोहे

 





राधे के अनमोल दोहे  



 सूर्य किरण को देखकर, खिल जाता है गात।
 मन भावन सब को लगे, सुंदर सुखद प्रभात।।

 मूंगफली और गुड़ करे,तन मन को मजबूत।
 शीत दूर करते यही, इसके बहुत सबूत।।

 धर्म कभी मत पूछना, कभी न पूछो जात।
 जग में सबसे तुम करो, इंसानो सी बात।।

  माँ  के जैसा है नहीं, जग में कोई और।
 माँ  की ममता की तरह, कहीं न मिलता ठौर।।

कुछ खेतों की जब पकी, फसल हुई तब नष्ट।
सोचो कितना हो रहा, है किसान को कष्ट।।

खाना पीना छोड़ कर, किया रात दिन काम।
श्वेद बहाया धूप में, किया नहीं आराम।।

आग कभी दुश्मन बनी, कभी बन गई मीत।
दुख देती है ग्रीष्म में, अच्छी लगती शीत।।

गेहूँ का भूसा जला, सारा जला अनाज।
आग बुझाने में लगा, देखो सकल समाज।।

जली फसल जब खेत में, कृषक हुआ गमगीन।
दोषी इसमें कौन है, बात बड़ी संगीन।।

दया करो अब सूर्य तुम, कुछ कम कर दो ताप।
जग की भव बाधा हरो, जगत नियंता आप।।

राधे कहती ईश से, करदेना उपकार।
भरा रहे हर धाम में, सबका ही भंडार

छोटी चिड़िया ढूँढती,ऊँचे ऊँचे वृक्ष ।
नीड़ बनाने मैं बयां, होती सबसे दक्ष।।

राधा तिवारी राधेगोपाल , राधे के अनमोल दोहे

 



राधे के अनमोल दोहे 

गुरुवर उनको डांटते, जिनसे करते प्यार।
उन्हें न मिलता ज्ञान है, जो होते मक्कार।।

होंठो  पर बंसी लगा, बजा रहे घनश्याम।
ग्वाल बाल के हैं सखा, राधे के है श्याम।।

बाँह थाम कर कृष्ण की, जग हो जाए पार।
जगत नियंता ही सदा, होते खेवन हार।।

होती है  जिसकी गरज, वह बन जाता खास।।
वरना पूरे विश्व में, मेला रहे उदास।।

 रिश्तो से करना यहाँ, कभी नहीं खिलवाड़।
 मात-पिता करते सदा, बच्चों को ही लाड़।।

 रखना मन में प्रेम को, जिसमें है विज्ञान।
 जगत बना है प्रेम से, इतना लेना जान।।

 सदा निभाओ प्रेम को, प्रेम जगत की रीत।
 जीवन में  करते रहो, सब जीवों से प्रीत।।

 जाहिर होता है वही, जैसी जिसकी सोच।
 सच को कहने में कभी, मत करना संकोच।।

 उन स मैं जब से मिली, हुआ प्रफुल्लित अंग।
 मेरा तन-मन खिल उठा,पाकर उनका संग।।

 दूर नहीं जाना कहीं, रहना हरदम पास।
 बिना आपके हैं नहीं, जीने की कुछ आस।।