पिछले वर्ष में सोचो हमने ,क्या खोया क्या पाया है।।
महँगाई की मार पड़ी है, हुए लोग लाचार हैं।
सम्बन्धों को भूल गए सब, रिश्ते नाते भार हैं।।
शान्ति अमन का देश था मेरा, हिंसा कहां से आई है ।
प्रेम प्रीति को
त्याग दिया है, हिंसा क्यों अपनाई है।।
मौत रोज ही बुझा रही है, जलते हुए चरागों को ।
सीमाएं भी लील रही
है, अपने वीर अभागों को ।।
सब होंगे खुशहाल
यही तो, राधे करती है आशा ।
नए वर्ष में पूरी
होंवे, जन-जन की सब अभिलाषा ।।
महके आँगन बाग
हमारे, जन-जन भी खुशहाल रहे।
सभी तरह से मंगलदाई ,सबको नूतन साल रहे।।
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Sunday, 31 December 2017
कविता "क्या खोया क्या पाया है" (राधा तिवारी)
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