Sunday, 10 December 2017

"स्मृति उपवन" का अभिमत (राधा तिवारी)

उत्तराखंड के जाने माने कवि
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी के संस्मरणों के संग्रह "स्मृति उपवन" का अभिमत लिखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों द्वारा "स्मृति उपवन" और "ग़ज़लियात-ए-रूप" पुस्तकों का विमोचन किया गया।
शास्त्री जी को दोनों पुस्तकों के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ,
साथ ही कामना करती हूँ कि उनकी लेखनी निरन्तर चलती रहे।
'स्मृति उपवन पठनीय और संग्रहणीय
     संस्मरणों के संग्रह स्मृति उपवनके पुस्तकाकार करने हेतु बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करें। आपके संस्मरणों को पढ़ने  का अवसर प्राप्त हुआ और मैं भाग्यशाली हूँ कि आपके इस संग्रह के विषय में अपने विचार दे रही हूँ। आपकी रचनाएँ पढ़ने का मौका मिलता रहता है और आशा करती हूँ कि भविष्य में भी आपकी रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।
     इसी क्रम में आपकी काव्य रचनाओं से सुशोभित आपके काव्य संग्रह धरा के रंग, रूप की धूप, हँसता गाता बचपन, कदम कदम पर घास, नन्हे सुमन और आपके द्वारा प्रकाशित प्रथम कविता संग्रह सुख का सूरज पढ़ने का मौका मिला। कई वर्षों से आपके सान्निध्य में रहकर आपकी काव्य के प्रति रुचि को देखा पर आज आपके संस्मरणों को पढ़कर तो मेरा मन गद-गद हो गया ।
बाबा नागार्जुन से आपकी निकटता यह दर्शाती है कि आप सहृदय व्यक्तित्व के धनी हैं। श्री रमेश पोखरियाल निशंक जिन्होंने  उत्तराखंड के  मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया। उनके विद्यार्थीरूप और उनके काव्य प्रेम को भी आपने अपने संस्मरण में जगह दी।
     आपके संस्मरण पढ़ कर लगा कि आपको मानवों से ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों से भी काफी लगाव रहा है। टॉमी, मिट्ठू तोता, जूली वाले प्रसंग इनके जीवन्त उदाहरण है। कबूतरों के लिए तो आपने कारपेंटर से लकड़ी का घर तक बनवा डाला। जिसमें कई वर्ष तक कबूतर-कबूतरी ने तिनके-तिनके जोड़ कर घोंसला बनाया अंडे दिए और इस संस्मरण से यह सीख देने की कोशिश की कि बच्चे बड़े होने पर किस प्रकार माता-पिता को अकेला छोड़कर चले जाते हैं। इस बात ने आपके मन में गहरी जगह बनाई की जानवर ही नहीं अपितु इंसानों के भी बच्चे बड़े होने पर अपने बूढ़े माता पिता को छोड़ कर क्यों चले जाते है? जिन्होंने उनको पाल पास कर इतना बड़ा किया।
      आपने अपने संस्मरणों में अपनी पत्नी श्रीमती अमर भारती जी को भी जगह दी है जिससे आपके जीवन में अपनी जीवन संगिनी का स्थान साफ परिलक्षित होता है।
      आपकी स्मृति आपके संस्मरणों में यह सिद्ध करती है कि आप बचपन से ही स्मृति के धनी रहे हैं जो आपके सस्मरणों के संग्रह ‘‘स्मृति उपवन’’ के नाम को सार्थक करता है।
     संस्मरणों के साथ आपने तत्कालीन तस्वीरें डाल कर अपने संस्मरणों को और भी जीवन्त कर दिया है। जिससे पाठकों का इसकी प्रमाणिकता पर विश्वास और गहरा होगा।
     कच्चे धगों में उमड़ा है भाई बहन का प्यारआपका अपनी बहनों के प्रति प्रेम को दर्शाता है। दादी चम्मच का प्रयोग करो में आपने पाठकों को शिक्षा भी दी है जो प्रशंसनीय है ।
      आपके संस्मरण पहली बार बना दूल्हा-पहली बार चढ़ा घोड़ीमें हास्य रस भी परिलक्षित हुआ है। इसके अलावा अखबार किस तरह पढ़ते हैं यह भी आपको बाबा नागार्जुन ने बहुत अच्छी तरह समझाया है। भय का भूतसंस्मरण  बताता है कि भूत का भय मानव के अंदर ही होता है। जबकि भूत नाम की कोई चीज होती ही नहीं है।
      बाबा नागार्जुन का घूमने का लगाव पढ़कर लगा कि हमें अन्त समय तक अपने भीतर जीवन्तता बनाए रखनी चाहिए। लंगड़ा आम के बारे मैं बाबा की सोच कि उसमें गुठली छोटी होती है और गूदा ज्यादा, जबकि अन्य किस्म के आमों में गुठली और छिलके के सिवा कुछ भी नहीं होता है, यह जानकर बनारसी आम की एक नई परिभाषा मिली।
     स्मृति उपवनसे हमें गुरु-शिष्य के व्यवहार का ज्ञान का भी आभास हुआ। बाबा नागार्जुन के प्रति आपका लगाव इतना था कि वे जब भी खटीमा आये तीन-चार दिन आपके घर जरूर ठहरे थे और आपके विजय सुपर स्कूटर पर बैठकर बनबसा-टनकपुर तक घूमने जाते थे।
    स्मृति उपवनको पढ़कर लगा कि पहाड़ी क्षेत्रा के प्रति आपका प्यार विशेषकर लोहाघाट जहाँ आपके बचपन के कुछ सुनहरे महीनें व्यतीत हुए, वहाँ के फल जैसे खुमानी, प्लम, भांग के बीज वाली नींबू की चटनी और सरसों राई वाला पहाड़ी खीरे का रायता आपके पहाड़ व प्रकृति प्रेमी होने को दर्शाता है।
बाल हठ’, ‘दादी प्रसाद दे दोने तो मेरा मन ही मोह लिया।
     प्राची और प्रांजल का आपके संस्मरणों में उल्लेख आपका अपनी पौत्रा-पौत्री के प्रेम को दर्शाता है। बाबा नागार्जुन और उनके दो साथियों को अनुसूचित जाति की महिलाओं द्वारा पानी न पिलाना उस समय की सामाजिक कुरीतियों को भी उजागर करता है।
     ब्लॉग लेखन एक आधुनिक कला है जिसका उपयोग आप ने भरपूर किया है। आप लेखन को कापी पेंसिल का माध्यम न बनाकर सीधे ब्लॉग में ही उतार देते हैं। चाहे वह दोहे, छन्द, कविता, कहानी-गीत या मुक्तक आदि ही क्यों न हों।       
     मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपकी यह स्मृति उपवनप्रकाशित होने के बाद पाठकों को बहुत प्रेरित करेगी।
     मैं कामना करती हूँ कि आपकी लेखनी को इसी प्रकार बल मिलता रहे। भगवान आपको आगे भी लिखने की प्रेरणा और शक्ति दे और रोज एक रचना लिखने का आप का संकल्प कभी न टूटे।
    आप दीर्घायु हों जिससे कि आने वाली पीढ़ियों को आपके अनुभवों का लाभ मिलता रहे।
                        हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
राधातिवारी राधेगोपाल
(अंग्रेजीअध्यापिका-राज.उ.मा.विद्यालय)
सबौरा, खटीमाजिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड)


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