तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं
तुम्हें दिल में बसा लूं मैं
तुम्हारे ख्वाब में आकर के तुम्हें
थोड़ा हंसा दूं मैं
तेरे कदमों की आहट से ये दिल बेचैन
होता है
तुम्हें ना देखता है तो स्वयं का चैन
खोता है
तेरे आगोश में आकर तुझे अपना बना लूं
मैं
बना कर मुरलिया तुझको करीने से सजा
लूँ मैं
तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं
तुम्हें दिल में बसा लूं मैं
हमारे नयन में होगा तुम्हारे दर्द का
सागर
तुम्हारी ही हँसी से तो भरेगी प्यार
की गागर
कभी घर के झरोखे से, तुम्हें
छिपकर निहारुँ में ।
कभी आँखों की पलकों पर ,तुम्हें
दिलवर बिठा लूं मैं ।।
तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं तुम्हें दिल में बसा लूं मैं
कभी पाकर के खो जाऊं, कभी
खोकर के पाऊँ मैं।
कभी तुमको बुला लूंगी कभी खुद चलके
आऊँ मैं ।।
घनी जुल्फों के साये में, कभी
तुमको बिठालूँ मै।
तुम्हें देखूं तुम्हें छूलूं, तुम्हें
दिल में बसा लूँ मैं।।
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Saturday, 2 December 2017
गीत "तुम्हें देखूं तुम्हें छू लूं" (राधा तिवारी)
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