Saturday 8 June 2019

" भगवान शालिग्राम " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


भगवान शालिग्राम 
भगवान शालिग्राम का अभिषेक षोडशोपचार सहित( " गंध, तिलक, चंदन, फल के रस, धूप, दीप, नैवेद्य, चीनी, शहद, दूध, दही ,घी") करते हुए।

 शालिग्राम नेपाल की गंडकी नदी से प्राप्त होते हैं।
 इन्हें कीड़ा खाता है और यह साक्षात विष्णु के अवतार हैं।
स्त्रियाँ इन्हें स्पर्श नही करती। इनके अंदर स्वर्ण भी होता है और इनकी विशेषता यह है कि ये खंडित भी पूजनीय है।
 इसके अलावा  नर्मदा के नर्मदेश्वर महादेव हैं और भगवान विष्णु गंडकी के शालिग्राम में पाए जाते हैं।
 बद्रीनाथ धाम में भी 'शालिग्राम भगवान' ' शालिग्राम शिला' पर ही हैं

Friday 7 June 2019

दोहे, "सेवानिवृत्ति " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )


सेवानिवृत्ति
*दिनांक ३० मार्च २०१ रा मा वि सबौरा के प्रधानाचार्य श्री मनीराम शास्त्री जी ने अपने लंबे सेवाकाल के द्वारा शिक्षा विभाग को अपनी उत्कृष्ट सेवायें प्रदान की है, l 
 सेवानिवृत्ति पर आपको  हार्दिक शुभकामनाएं  आप  स्वस्थ एवं मंगलमय जीवनयापन करते हुए दीर्घायु एवम यशस्वी हों
सबौरा परिवार  ईश्वर से प्रार्थना  करता है 

तुम्हीं ने दिया था हमें तो सहारा
 तुम्ही आके देते थे सबको सहारा

 कभी कुछ लिखाया कभी कुछ पढ़ाया
शब्दों का भंडार तुमसे था पाया
 बच्चों को बाँटा है सदज्ञान हरदम
 शिक्षक को देते हो सम्मान हरदम
 तुम्हें तो विद्यालय सदा लगता प्यारा
तुम्ही आके देते थे सबको सहारा

 संस्कृत पढ़ाई थी बच्चों को तुमने
 दिया ग्यान भंडार बच्चों को तुमने
 गुरु देवता होते हैं जग में हरदम
 बड़े भाई बनकर रहे आप हरदम
 दीर्घायू हों ये है कहना हमारा
तुम्ही आके देते थे सबको सहारा

 खुशीयों भरा  हो आगे का जीवन
 शिक्षार्थ तुमने किया था समर्पण
यादों में आना न हमको भुलाना
अश्कों के मोती न यूँ ही बहाना
बन कर रहोगे जगत में सितारा
 तुम्ही आके देते थे सबको सहारा





Thursday 6 June 2019

ग़ज़ल, " ताप सूरज का" ( राधा तिवारी )" राधेगोपाल "


ताप सूरज का
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 ताप सूरज का धरा को खा रहा
 दुख सभी का है दिलों पर छा रहा

 पीर हर कर बांट लो खुशियांँ  यहाँ
 दुख का बादल पास सबके आ रहा

 प्यार से इंसान अब रहता नहीं
 जानवर पर भी सितम वो ढा रहा

 चल रहा था जो अभी तक शान से
 चार कांधों पर अभी वो जा रहा

 जन्म लेता है शिशु के रूप में
 अंत भी वह साथ अपने ला रहा

 श्रम करें इंसान इतना इस जहांँ  में
 पर कहाँ  आराम फिर भी पा रहा

 जी रही राधे यहांँ अब गर्दिशों में
 किंतु फिर भी ये जगत है भा रहा

Wednesday 5 June 2019

दोहे, " पर्यावरण दिवस " (राधा तिवारी " राधेगोपाल ")


पर्यावरण दिवस 
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भूमी, जल, वायू, ध्वनी,  परदूषण है चार।
 इनके कारण ही सभी,  होते सदा बीमार।।

 पवन प्रदूषण ला रहा, बढ़ा श्वास का रोग।
 नित इसमें विष घुल रहा, कैसे रहे निरोग।।

 जल का संचय कीजिए, मत करना बरबाद। 
बूँद-बूँद जल की करें,  जीवो को आबाद।।

 हवा अन्न चारा सभी, देते हमको पेड़।
 क्यों मूर्ख प्राणी इन्हें, जड़ से रहा उखेड़।।

 आँसू भी अब आँख के, सभी गए हैं सूख।
 दीनों का दुख देखकर, हँसते यहाँँ  रसूख।

 कपड़े का या जूट का, थैला करो प्रयोग।
 पन्नी का करना नहीं,  इंसा अब उपयोग।।

 उद्योगों से निकलता, धुआँ  यहाँ  हर बार।
 बढ़ा रहे दूषण सभी, चलते मोटर कार।।

 पैदल जो चलते यहाँ, अच्छे हैं वो लोग।
 सैर सपाटे से रहे, हरदम सभी निरोग।।

 पेड़ लगाने मैं कभी, करो ना आलस मित्र।
 पेड़ पौधों की यहाँ, महिमा बड़ी विचित्र।।

दोहे, " ईद मुबारक " (राधा तिवारी " राधेगोपाल ")


 ईद मुबारक 
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चाहे तुम गीता पढ़ो, चाहे पढ़ो कुरान।
 दोनों ही बतला रहे, बने रहो इंसान।।

 आपस में मिलकर रहो, कहता संत समाज।
 सब हिंदू पूजा करो, मुस्लिम पढ़ो नमाज।।

 अब्दुल मेले में गया, चिमटा लिया खरीद।
 अम्मा बेटा प्यार से, मना रहे हैं ईद।।

 खुशियांँ  सबको बाँटते, पर्व और त्योहार।
 ईद मिलन से हो रहे, घर आंगन गुलजार।।

 ईद मुबारक कह रहे, मिलकर सारे लोग।
 दुनिया में अलगाव का, फैले कहीं न रोग।।

Sunday 2 June 2019

गणेश की हो वंदना, राधा तिवारी " राधेगोपाल "


गणेश की हो वंदना
 दोनों हाथ जोड़कर
प्रार्थना है कर रहे
 लेकर नाम ईश का
 आवाहन  है कर रहे
 रख के अपनी बात
ईश को बता रहे
 सामने तो ईश के
 प्रस्तावना वो धर रहे
 काम कोई भी करें
 हम याद ईश को रखें
 सिर झुका मिलकर सभी
 आराधना हैं कर रहे
काम जब कोई करो
गणेश की हो वंदना
 रख कलश पे फूल पात
स्थापना है कर रहे
 राधे हाथ जोड़कर के
 ईश से कुछ मांगती
 जग मैं सब खुशहाल हों
 कामना वो कर रही

Saturday 1 June 2019

ग़ज़ल, "प्रीत की चदरिया" ( राधा तिवारी )" राधेगोपाल "


प्रीत की चदरिया


 शीशा समझ के दिल को अब सब ही तोड़ते हैं
 नींबू के जैसे रिश्ते अब सब निचोड़ते हैं 

आना कभी धरा पर इंसा को रचने वाले
 देखो तो आकर कैसे सब मुंह मोड़ते हैं

 जब था बनाया तुमने इंसा को एक जैसा
 मजहब बना कर अब वो दीवार जोड़ते हैं 

संसार में नहीं है कोई हिंदू सिख इसाई 
अब प्रीत की चदरिया सब लोग ओढते हैं 

गीतो ग़ज़ल में राधे समझा कर सबको हारी 
मिट्टी की हांडी अब तो सब लोग फोड़ते हैं