कलम पर हो रहे भारी
मेरी हर सोच मेरे बोल कलम पर हो रहे भारी
लिखाती है वही लिखती हूँ कैसी है ये लाचारी
ख्यालों में ही खो करके तुम्हारा नाम लेती हूँ
यादों के झरोखे भी कलम पर हो रहे भारी
तुम्ही हो सोच में मेरे तुम्हें ही सोचती हरदम
मेरे हर सोच ती जानम कलम पर हो रहे भारी
नजर में तू मगर फिर भी यह नैना ढूंढते तुझको
जगत के लोग भी साजन कलम पर हो रहे भारी
कहे राधा के लेखक की कलम में जान होती है
जगत के जीव निर्जीव भी कलम पर हो रहे भारी
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Friday 31 May 2019
ग़ज़ल, "कलम पर हो रहे भारी" ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
Thursday 30 May 2019
गीत, "बादल आ जाओ" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
बादल आ जाओ
रोप दिए हैं धान बादल आ जाओ
है दुखी यहाँ इंसान बादल आ जाओ
लू चलती है जेठ माह में ,तपिस सूर्य की झुलसाती
जल बिन मीन नही दरिया में इधर उधर को जा पटी
बढे डरा कि शान बादल आ जाओ
जेठ दोपहरिया तन जला रही हैं , अन्दर सबको भगा रही है
धनिक सो रहे हैं ऐ सी में ,निर्धन को वो जगा रही है
दूर करो व्यवधान बादल आ जाओ
गरम थपेड़ों को संग ले कर ,धुल भरी आंधी आती है
देखर तपिस ये प्यासी धरती , हर इंसा को अकुलाती है
अब कहना सबका मान बादल आ जाओ
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Wednesday 29 May 2019
दोहे, " बच्चों की परवाह" ( राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
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Tuesday 28 May 2019
दोहे, "मेटा हैजा रोग" (राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
मेटा हैजा रोग
याद हमें भी आ रहा, सावरकर का नाम।
मुक्त कराने देश को, किया उन्होंने काम।
राधा देवी मातु थी, दामोदर थे तात।
लोगों के हित के लिए, करते थे वो बात।।
जन्म अठ्ठाईस मई को, ग्राम भगुर का नाम।
नासिक जिल्ले में रहे, अपनी उम्र तमाम ।।
हैजे से होने लगी, मृत्यु वहाँ अकाल।
छीन ले गया वीर से, मात-पिता को काल।।
गोरे डब्ल्यू रैन ने, हैजा किया विराम।
हद को पार किया उसने, जला के सारे ग्राम।।
धूं-धूं जलती झोपड़ी, और जले कई लोग।
इसी तरह अंग्रेज ने, मेटा हैजा रोग।।
क्रूर बन गया शख्स वो, जो करता था राज।
हैवानियत को पार कर, बन बैठा सरताज।।
दो लालों ने हिंद के, रैन की ली जान।
क्रोधी का तो क्रोध भी, और चढ़ा परवान।।
लगातार मरने लगे, दोनों गुट के लाल।
बदला लेने वीर ने, रूप धरा विकराल।।
पुस्तक लिख कर के रखे, अपने सभी विचार।
क्रोधी गोरे हो गए, उल्टा देख प्रचार।।
स्वदेशी सब माल लो, कहते सदा ही वीर।
अंग्रेजों की देश से, दूर करो तस्वीर।।
माल विदेशी को जला, खेला होली खेल।
अंग्रेजों की चाल को, करते थे वो फेल।।
तेज तपस्या तीर का, सावरकर उपनाम।
अटल बिहारी ने रखें, सावरकर के नाम।।
काले पानी कि सजा , भुगते दो दो बार l
रिहा वीर को कीजिये ,करता देश गुहार ll
क्रांतिकारि लेखक रहे, था व्यक्तित्व महान्।
सुधरे सकल समाज ये, था उनका अरमान।।
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दोहे "तक्षशिला में आग " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
तक्षशिला में आगतक्षशिला में आग लगी, महल हो गया खाक।चौ मंजिल से कूदते, बच्चे बन बेबाक।।धूं धूं करके जल उठा, महल मंजिला चार।बच्चों पर प्रभु हो गया, कैसा अत्याचार।।प्राणों के हित कूदते, एक एक के बाद।लोग सभी हैं देखते, बिना करे संवाद।।जो ऊपर से कूद गए, उनने झेली पीर।लेकिन जो अंदर रहे, उनका जला शरीर।।ह्रदय विदारक दृश्य था, देख रहे थे लोग।बचा नहीं कोई वहाँ, कैसा था संजोग।।पढ़ने को आए सभी, अपनी माँ के लाल।मौत आ गई बीच में, बनी सभी का काल।।बच्चों ऐसे समय में, धरो सदा ही धीर।जीवन हम उतना जिएँ, जितनी है तकदीर।।जीवन में सब कीजिए, सबसे शुभ व्यवहार।सदा ही सबको कीजिए, आप ह्रदय से प्यार।।
Monday 20 May 2019
बाल कविता, "पेड़ लगाओ" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
पेड़ लगाओ
सूरज जब नभ में आता है तन सबका ही झुलसाता है घर के अन्दर जाते लोग ताकि वो सब रहे निरोग ढूंढ रहे पेड़ों कि छाया पर अब पेड़ कहीं न पाया समय समय पर पेड़ लगाओ ताप धरा का दूर भगाओ ककड़ी तरबूजा तुम खाओ इससे शीतलता तुम पाओ जो नीम्बू का पीते जूस गर्मी से रहते महफूज़ हर प्राणी एक पेड़ लगाओ धरती पर हरियाली लाओ |
Saturday 18 May 2019
दोहे, " त्रिफला " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
त्रिफला
दिव्य औषधि त्रिफला, सेवन कर इंसान।
उपयोगी यह है बहुत, रोग निरोधक जान।।
रोज त्रीफला खाइए, दूर करेगा रोग।
तन की व्याधि दूर कर, रखता हमें निरोग।।
उठते ही कर लीजिए, त्रिफला जल का पान।
रोग सभी मिट जाएंगे, मेरा कहना मान।।
हरड़ बहेड़ा आंवला, त्रिफला के हैं तत्व।
जीवन में होता बहुत, इसका बहुत महत्व।।
उपयोगी यह है बहुत, करता दूर विकार।
रोग मिटे तन से सभी, हो जीवन साकार।।
राधे करती कामना, रहना सभी निरोग।
जीवन के दो चार दिन, आप लीजिए भोग।।
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Friday 17 May 2019
दोहे, " काफल " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
काफल
काफल अब पकने लगे, आया चैत बैसाख। काफल पाको कह रही, बैठी चिड़िया शाख।।
काफल छोटा है मगर, लेकिन है रसदार।
खाते इसको है सभी, नमक लगा हर बार।।
दाना दाना खा रहे, जो भी पहली बार।
फिर वह मुंह में डालते, दानों का अंबार।।
काफल खाकर पीजिए, पानी एक गिलास।
नमक तेल से हो रहा, स्वाद बहुत ही खास।।
घास काटने जा रही, जंगल में जो नार।
हसिया लेकर हाथ में, लगा रही है धार।।
लाल लाल है दिख रहे, काफल चारों ओर।
बच्चे लेने जा रहे, जग कर इनको भोर।।
केवल दो पल के लिए, काफल में है जान।
सिकुड़ गए गर ये तभी, बासी इनको जान।।
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Thursday 16 May 2019
दोहे, " मिलता सदा सुकून।।" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
मिलता सदा सुकून
ध्यान सदा ही दीजिए, गर नाक से आए खून। दूब घास के स्वरस से, मिलता सदा सुकून।।
धरती में मिलते सदा, सबको ही भगवान।
मात-पिता के रूप में, देते हैं वरदान।।
दूषित अब होने लगा, वाणी वायु का रंग।
सब की बदली चाल है, बदल गया है ढंग।।
सूर्य अगर ढलता नहीं, नर होता हलकान।
होती दिन की ही तरह, रातों की भी शान।।
मुखपोथी पर हो गए, जिनके मित्र हजार।
कैसे वह परिवार से, यहाँ करेगा प्यार।।
इंसा इंसा से करो, इंसा जैसा मेल।
जग में रहना है नहीं, यहाँ हंसी का खेल।।
माँ समझाती थी हमें, झूठ बोलना पाप।
मोबाइल पर लोग अब, बढा रहे हैं ताप।।
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Wednesday 15 May 2019
बाल कविता, "बढ़ता ताप " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
बढ़ता ताप
सूरज का जब बढ़ता ताप तब पानी बन जाता भाप उड़ कर के आकाश में जाता कोई उसको देख न पता सूखी नदिया , छरने सूखे चेहरे सबके हो गए रूखे नीम्बू कि अब आई बहार पीलो पानी बार बार तेज हो रही है अब धुप बिगड़ रहा है सबका रूप बच्चों घर के अन्दर आओ घर में तुम शीतलता पाओ |
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