बात
प्रेमी आपस में करें, आंखों से ही बात। शब्दों के आधार तो, पहुंचाते आघात।। पहुंचाते आघात, बात कर सोच समझ कर। करना मत तकरार, सुलझती बातें मिलकर। कह राधे गोपाल, लगाओ नेह सुयश में। मिलकर रहना साथ, सदा प्रेमी आपस में।। लगातार ही आ रही बारिश चारों ओर कहीं बाढ की है दशा कहीं मेघ का शोर कहीं मेघ का शोर फटे अब क्यों पर बादल धरती पर तो नीर घूमता बनके पागल कह राधे गोपाल करेंगे वृक्ष पार ही बोते रहना पेड धरा पर लगातार ही |
Tuesday 31 December 2019
कुण्डलियाँ , " बात " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
Monday 30 December 2019
Sunday 29 December 2019
कुण्डलियाँ, " कुल्हाड़ी ", (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
कुल्हाड़ी
सुख-दुख जीवन में सदा, आते एक समान | सुख जल्दी से बीतता, दुख लाता व्यवधान | दुख लाता व्यवधान, झलकती पीड़ा भारी | ईश्वर करता दूर, सखे पनपती पीर तुम्हारी | कह राधे गोपाल, तसल्ली रक्खो मन में | आते रहते पास, अरे सुख-दुख जीवन में || कुल्हाड़ी का तुम कभी, मत करना उपयोग | पेड़ों के बिन जगत मेंं, बढ़ जाएँगे रोग | बढ़ जाएँगे रोग, उगाओ पेड़ धरा पर | सूखी बंजर भूमि, अरे तू हरा-भरा कर | कह राधे गोपाल, बोलती सदा पहाड़ी | पेड़ बचा लो मित्र, फेंककर दूर कुल्हाड़ी || |
कुण्डलियाँ, " जलकर काया भस्म " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
जलकर काया भस्म
जीवित रहने के लिए, खाते हैं अवलेह |
खाते हैं अवलेह, पी रहे हैं गंगाजल |
खबर नहीं है यार, अरे क्या होगा प्रतिफल |
कह राधे गोपाल, रहो आपस में मिलकर |
माटी की है देह, भस्म हो जाए जलकर ||
: काम, क्रोध, मद, लोभ से, रहना हरदम दूर |
करके अच्छे काम को, होते सब मशहूर |
होते सब मशहूर, कभी नफरत मत पालो |
बांटो हरपल प्यार, फूट को कभी न डालो |
कह राधे गोपाल, रहो तुम सदा बोध में |
हो जाता नुकसान, हमेशा काम-क्रोध में ||
: मात-पिता के सामने, करो न ऊँची बात |
अपनी बातों से कभी, देना मत आघात |
देना मत आघात, वही हैं मीत घनेरे |
बनकर के मजदूर, बनाए सुंदर डेरे |
कह राधे गोपाल, जिंदगी दुखी बिता के |
देते हैं आकाश, सितारे मात-पिता के ||
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