Sunday 31 May 2020

दोहे ,संकल्प " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


संकल्प 
Coronavirus In Punjab: 11 New Coronavirus Positive Cases Found In ...
राधे लो संकल्प को, रह लेना निज धाम।
रोग बड़ा गंभीर है, कोरोना है नाम।।

चूक अगर थोड़ी हुई , फैलेगा यह रोग।
हाथ मिलाना छोड़ दो, दूर रहो सब लोग।।

हाथ जोड़कर कीजिए, सबका ही सत्कार।
कोरोना करता नहीं ,इन पर कभी प्रहार ।।

साफ सफाई का रखो,, राधे हरदम ध्यान ।
हाथ मिलाने से करे ,कोरोना नुकसान ।।

हाथ सौंप दो ईश के, जीवन की पतवार।
आसानी से राधिका, हो जाओगे पार।।

डरो नहीं इस रोग से, हो जाओ तैयार।

रहो अकेले शान से, होगा इस पर वार ।।

Saturday 30 May 2020

गीत , चलता जाता है मजदूर " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


 चलता जाता है मजदूर



पथरीली पटरी को चुनता 
सुलभ सड़क को छोड़ रहा है
काम नहीं अब करना उसको 
रुख वो घर को मोड़ रहा 
तन मन से वह थका हुआ है 
लौट रहा होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

कदम द्वार की चौखट तक भी 
अब वह नहीं रख पाता है 
चलते-चलते थका मुसाफिर 
घर आकर मर जाता है 
भूखा ही वह लौट रहा है 
देखो तो होकर मजबूर 
चलता जाता है मजदूर।।

सोशल डिस्टेंस के कारण 
वह तो पैदल चलता है 
अपने ही घर में अब मानव 
अपनों को ही खलता है 
कंटीली झाड़ी में तो अब 
वो है चलने को मजबूर 
चलता जाता है मजदूर।।

कहता है यह रोग जगत में 
हाथ मिलाना पाप हुआ 
खोल मुँह को बातें करना 
भी अब तो अभिशाप हुआ
जूझ रहा इस रोग से अब तो
सारा जग होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

कहीं पड़ी लाठी व डंडे 
सीमा पर भी वार हुआ 
कभी बाँध बच्चे को काँधे 
पापा भी लाचार हुआ 
जंगल जंगल चलता जाता 
देखो वह होकर मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

तनिक नहीं विश्राम कर रहा 
चाहे थक कर हो वह चूर
जीने की है उसे लालसा 
वो भी अब होता मगरूर
बढ़ता जाता है वह देखो
 हँसता हँसता हो मजबूर
चलता जाता है मजदूर।।

वाहन उसको नहीं चाहिए 
चाहे पैर पे छाले हो
अपने घर को लौट रहे 
हैं 
छीन गए आज निवाले हो
अपनी धुन में चलता जाता 
फिर भी हो करके मजबूर
चलता जाता है मजदूर।

Friday 29 May 2020

गीत , " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

गीत

जिस रोग का जग में पार नहीं, जो रोग सभी पर भारी है। 
मुँह ढक कर के सब निकले हैं,अब कैसी यह लाचारी है। 

बंद हो गए देवालय सब, 
मधुशालाएँ खुलती है ।
बेबस जनता आज सभी तो, 
राजनीति में तुलती है।
देव आ रहे हैं जग मैं अब ,बन करके संसारी हैं।
मुँह ढक कर के सब निकले हैं,अब कैसी यह लाचारी है। 

सुख दुख का साथी बन करके ,
मदद सभी की कर देना।
भला करोगे भला मिलेगा,
आप कभी मत कुछ लेना।
भूखों को भोजन दे देना, ये ही बस हितकारी है।
मुँह ढक कर के सब निकले हैं, अब कैसी यह लाचारी है। 

Friday 22 May 2020

लघु कथा , *मनोदशा* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

 *मनोदशा*
*लेखिका राधा तिवारी "राधेगोपाल"*


नहीं पापा नहीं!
आप ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते।
नहीं !
माना कि आप एक अच्छे फोटोग्राफर है, माना कि आपको पुरस्कृत किया जा चुका है अच्छी फोटो खींचने के लिए मगर नहीं,नहीं पापा।
ऐसा बोलते हुए चिराग ने पापा के हाथ से कैमरा छीन लिया।पापा हतप्रभ थे आखिर मेरे बेटे को क्या हो गया जो कल तक कहता था कि आप अच्छी तस्वीरें लेते हैं और आज वही मेरे हाथ से कैमरा छीन रहा।
वे सोफा में बैठ गए अपनी पत्नी से पानी मंगवाया,पानी पीया फिर चिराग के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने प्रेम पूर्वक इसका कारण पूछा।
चिराग बोला पापा और समय की बात अलग थी अभी कोरोना महामारी के कारण लोकडाउन चल रहा है।लोग बाहर अपने साथियों की अन्न दे कर मदद कर रहे हैं ।यदि हम हाथ फैलाते हुए उन लोगों की तस्वीर को अपने कैमरे में कैद करेंगे तो उन गरीबों को कैसा लगेगा। जब वह तस्वीरें लोगों तक पहुंचेगी हो सकता है कि पापा उसमें हम भी हो या हमारे कोई दोस्त हो और वह हंसी के पात्र ना बन जाए। प्लीज पापा।

मैंने देखा कि चिराग की आँखों में आँसू थे।मैं नि:शब्द था एक छोटे बच्चे की मनोदशा को देखकर और मैं चुपचाप अपना कैमरा ऐसे ही छोड़ कर बाहर की ओर चला गया और मन में प्रण कर लिया कि मैं मदद करने वालों की तस्वीर तो लुँगा मगर जिनकी मदद की जा रही है उनको कैमरे में कैद कदापि नहीं करूंगा। आखिर वह भी तो हमारे साथ के ही हैं, हम जैसे ही हैं।


Thursday 21 May 2020

डमरु घनाक्षरी , " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


डमरु घनाक्षरी
मटक मटक कर, पनघट तक चल।
अब मत जल भर ,चल अब घर पर।।
गटक न जल अब, शरबत मत चख।
भजन लगन कर, घर पर रहकर।।

छम छम मत कर,चल अब शरहद।
मत कर करतब, जग मग सब जन।।
रथ पर चढ़कर, नभ तक उड़कर ।
चल अब घर चल, अब न मचल कर ।।

Wednesday 20 May 2020

*मनहरण घनाक्षरी* , लक्षण - " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

 *मनहरण घनाक्षरी*
लक्षण -
मनहरण घनाक्षरी छन्द एक वार्णिक वृत्त है, जिसमें *कुल 4 पद* होते हैं तथा प्रत्येक पद में *4 चरण* होते हैं तथा 16 - 15 वर्णों पर यति, चारों पद समतुकांत, तथा अंत गुरु होने का प्रावधान है ।
इसे अन्य रूप में 8, 8, 8, 7 वर्णों पर क्रमशः यति के स्वरूप में पढ़ा एवं रचा जाता है । 

 जैसे 

" बंद हुआ काम-काज
बंद हुआ देश आज
 घर में ही बैठकर
 छुट्टियां बिताइए"


Tuesday 19 May 2020

घनाक्षरी छंद , भुखमरी " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

 भुखमरी 
दुनिया पर मंडरा रहा भूखमरी का संकट, 12 ...
आज सारे बलवान
धनवान बुद्धिमान
विद्वान है जहान
आप बतलाइए

आया है ये दौर कैसा
काम का नहीं है पैसा
घर-घर आप सब
भोज पहुँचाइए

झोपड़ी में है जो बच्चे
मन के है  वो तो सच्चे
पिताजी से कहते हैं
आप मुस्काइए

जनता बीमार सारी
विपदा है बड़ी भारी
भुखमरी दूर होगी
कैसे बतलाइए

Monday 18 May 2020

घनाक्षरी छंद , परिवार " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

 परिवार

सबके ही माता-पिता
होते हैं जीवन दाता
उनके तो हरदम
साथ में ही रहिए

माता को तो ईश जान
देती हैं सभी को ज्ञान
उनके ही साथ सब
दुख सुख सहिए

धरा तो है माँ समान
पिता तो हैं आसमान
ज़िन्दगी में उनसे तो
प्यार से ही कहिए

चलती जीवन गाड़ी
समतल या पहाड़ी
पिताजी इंजन बने
बच्चे तो है पहिए


Friday 15 May 2020

चौपाई , संयम " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


संयम

संयम सबको राह दिखाता 
संयम बनता भाग्य विधाता 
पालन इसका जो भी करता 
वह तो भूखा कभी ना मरता

महिमा है संयम की न्यारी 
संतुष्टि है सबसे प्यारी
बदलो अब तो जीवन शैली 
है बीमारी जग में फैली

लफ्डों में तो नहीं पड़ो तुम
क्रोध घृणा से सदा लड़ो तुम 
मीत बनाओ जग में सबको 
याद रखो तुम अपने रब को 

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस में सब भाई भाई
जो संयम को हरदम सहता
दुख तो उससे दूरही रहता

Thursday 14 May 2020

*चौपाई* संयम की शक्ति* " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


संयम की शक्ति* 

त्याग तपस्या बने सहारा
ऋषियों को संयम ने तारा
संयम की वह बात बताते
जीवों को वह नहीं सताते

मुश्किल घड़ियों को पहचानों 
संयम को ही शक्ति मानों
जब आती है विपदा भारी
संयम दूर करे लाचारी

सहनशीलता को अपनाना 
गुस्सा तुम मत कभी  दिखाना
दुख तो जीवन में आते हैं
संयम से ही वह जाते है

राम नाम है सबसे प्यारा 
संकट से है सबको तारा
प्यार दिखाती है जब राधा 
दुख होता है तब तो आधा 


Wednesday 13 May 2020

दोहे , श्रम " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),


श्रम
मजदूर | न्यूज़क्लिक
श्रम की कीमत जानते,हैं जग में विद्वान।
बिना काम के तो यहाँ,मिलता कैसे ज्ञान।।1।।

खड़ा हुआ बाजार में, बिकता हूँ मैं रोज।
सूरज लेता है सदा, मजदूरों का ओज।।2।।

तन भूखा रहता मगर ,मन में रहती आस।
पेट भरेगा शाम को, करता हूँ विश्वास।।3।।

देखो मैं हूँ आज फिर, बिकने को तैयार।
चौराहे पर हूँ खड़ा, तुम आओ बाजार ।।4।।

मिले नहीं मुझको अगर, किसी रोज तो काम।
दुखी ह्रदय से जा रहा उस दिन मैं निज धाम।।5।।

बीवी पूछेगी मुझे, कितना लाए दाम।
फूटी किस्मत का नहीं, जिक्र करूँगा आम।।6।।

घर में जाकर देखते, बच्चे खाली हाथ।
रोज नहीं मजदूर का, ईश्वर देते साथ।।7।।