वर्षा
![]() कल तक थी वर्षा बनी , फसलों को वरदान ।
आज हवा के संग में, चौपट करती धान।।
खड़ी हुई थी शान से, फसल खेत के बीच ।
आकर उसे गिरा गई, बारिश कर के कीच।।
पड़ी फसल को देखकर, चेहरे हुए मलीन।
कल जो थे हर्ष में ,आज हुए गमगीन।।
सोचा था भर जाएंगे, घर के अब भंडार।
पर वर्षा से बह गए ,लोगों के घर द्वार।।
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Tuesday, 10 September 2019
दोहे, वर्षा (राधा तिवारी" राधेगोपाल ")
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