भोजन देवदूत बन आ रहे, धरती पर भगवान। प्राण बचाने के लिए, बने यहां इंसान।। कहीं रोकते रास्ता, कहीं दे रहे दान । भोजन ही सबसे बड़ा, दान यहां श्रीमान।। आडंबर करना नहीं, रहना सब निजधाम। रहकर सबसे दूर ही, कर लेना आराम।। कठिन समय को देखकर, धरना हरदम धीर। क्रूर काल से आपको, बचा रहे रघुवीर।। प्रेम प्रीति में है भरा, यह सारा संसार । राधे हरदम ही करो, सबसे शुभ व्यवहार।। गए प्रेम वश राम जी, जब शबरी के द्वार। खाकर जूठे बेर को, दिया उसी को तार।। संदेश दिलों का ला रहा, ढाई आखर प्रेम। प्रियतम की तस्वीर को, छिपा रहा बन फ्रेम।। पुलकित यह जग हो रहा, जब मिले प्रेम की राह। फूल बिखरते जाएंगे ,गर मन में हो चाह।। |
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