सृजनहार
साहस से अपनी चले, नारी सीधी चाल l
सागर की लहरें सदा, लाती है भूचाल ll
जीवन के हर क्षेत्र , करती रही कमाल l
लेकिन दुनिया नारि पर, करती सदा सवाल ll
कदम जो नारी के बढे, दुनिया करे बवाल l
कौशल से है काटती, नारी सारे जाल ll
कंधे से कंधा मिला, नारी करती काम l
नारी के तो भाग्य में, नहीं लिखा आराम ll
प्यार और सद्भाव से, भरी है हर एक नार l
नारी ही संसार की, होती सृजनहार ll
महिलाओं पर हो रहा, नित ही अत्याचार l
हो करके गंभीर तुम, करना जरा विचार ll
दुर्गा के जैसे यहां , नारी के नौ रूप l
कैसे भी हालात हो, बन जाती अनुरूप ll
नारी के दिल से कभी, करना मत खिलवाड़ l
नर को देती है सदा, नारी सदा पछाड़ ll
नारी को देना सदा, कदम-कदम पर मान
l
भूले से भी नारि का, करना मत अपमान ll
नारी का होता सदा, सुंदर सरल सुभाव
l
नारी का करते रहो, मन से आदर भाव ll
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Monday, 14 May 2018
"सृजनहार" दोहे राधा तिवारी" राधेगोपाल "
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