जिंदगी का हिसाब
प्यार से भरी मैं किताब लिख रही हूँ ।
खुद से ही प्रश्न करके जवाब लिख रही हूँ।।
काँटों भरी धरा तो सब ओर दिख रही है।
लेकिन धरा को मैं तो गुलाब लिख रही हूँ ।।
हैं चाँद और सितारे रात में चमकते।
सूरत को ही मैं अपनी आफताब लिख रही हूँ।।
जैसा दिख रहा है वैसा नहीं है जीवन।
मैं ज़िन्दगी को सुंदर नकाब लिख रही हूँ।।
लब्ज़ों मैं खुद को ढूंढो मुमकिन नहीं है राधे।
मैं खुद ही जिंदगी का हिसाब लिख रही हूँ।।
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