Thursday, 26 April 2018

मेरा मन राधा तिवारी' ' राधेगोपाल '


मेरी साँसों के तारों को,
किसने झँकृत कर डाला।
मेरा मन कीट पतंगों सा,
हो गया आज क्यों मतवाला।।

पतवार नहीं कर में मेरे,
नौका को पार करो मेरी।
अब नहीं सूझती राह मुझे,
नौका को लहरों ने घेरी।।

मेरे मन में है चाह यही,
हरदम मेरे दिल में रहना।
यह तो तेरा अपना घर है,
हँसते-हँसते पीड़ा सहना।।

यह कौन कहाँ से आए हैं,
किसने की है जोरा जोरी।
दिल की धड़कन में बस करके,
तुमने मेरी निंदिया चोरी।।

मेरे दो नैनों में आकर,
किसने ज्योति रोशन कर दी।
मेरे तन में बस करके.
इक नई ऊर्जा है भर दी।।

व्याकुल हो जाता है मन जब,
तब अन्धकार छा जाता है ।
खुशियों की मधुर कल्पना में,
सुन्दर मधुबन आ जाता है ।।

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