दोराहे
फंस जाती हूं कभी-कभी दोराहे पर
सोचती हूं इधर जाऊं तो कैसा होगा
उधर जाऊं तो कैसा होगा
यहां रहूं तो ऐसा होगा
वहाँ रहूँ तो वैसा होगा
समझ नहीं आता है
दो नाव में पैर रखना बड़ा मुश्किल है
यदि एक नाव इधर-उधर हुई
तो पैर डगमगाया और हम सीधा नदी में
सोचती हूँ क्या यह दोराहे
केवल मेरे ही जीवन में आते हैं
या सभी को इन से दो-चार होना होता है
काश इन दो राहों की जगह
केवल एक राह होती
तो fजंदगी हंसी खुशी चल पाती
एक को छोड़ने का दुख नही होता
न दूसरे को पकड़ने की कोfशश
एक राह एक काम....
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