Thursday, 8 March 2018

दोहे "नारी के नव रूप" (राधा तिवारी)

साहस से अपनी चले, राधा सीधी चाल l
 सागर की लहरें सदा, लाती है भूचाल ll

जीवन के हर क्षेत्र , करती रही कमाल l
 लेकिन दुनिया नारि परकरती सदा सवाल  ll

कदम जो नारी के बढे, दुनिया करे बवाल l
कौशल से वो काटती, जग के सारे जाल ll

 कंधे से कंधा मिला , नारी करती काम l
 नारी के तो भाग्य में, नहीं लिखा आराम ll

प्यार और सद्भाव से , भरी हुई हर नार l
नारी ही संसार की , होती सिरजनहार ll

महिलाओं पर हो रहा, प्रतिदिन अत्याचार l
 हो करके गंभीर तुम, करना जरा विचार ll

दुर्गा के जैसे यहां ,  नारी के नव रूप l
 कैसे भी हालात हो, बन जाती अनुरूप ll

 नारी के दिल से कभी, करना मत खिलवाड़ l
 नर को जीवनक्षेत्र में, देती नार पछाड़ ll

 नारी को देना सदा, कदम-कदम पर मान l
 भूले से भी नारि का, करना मत अपमान  ll

 नारी का होता सदा,  सुंदर सरल सुभाव  l
नारी का करते रहो, मन से आदर भाव ll

Wednesday, 21 February 2018

गीत "तुमसे जीवन चलता है" (राधा तिवारी)


जब तुमसे बातें होती है, दिल को अपनापन मिलता है। 
देख तुम्हारी अनुपम छवि को, मेरा उपवन खिलता है।।

 याद तुम्हारी मेरे मन से, कभी भुलाई नहीं है जाती।
कितनी कोशिश करूँ मगर, ये बरबस आकर हमें सताती।।
मन झंकृत हो जाता है, जब बूटा-पत्ता हिलता है ।
जब तुमसे बातें होती है, अपनापन दिल को मिलता है। 

 छल-फरेब को नहीं जानती, मैं तो जानूँ करना प्यार।
 दिल मेरा निष्कपट हमेशा, करता समता का व्यवहार।।
 तुम हो मेरे प्रियतम-प्यारे, तुमसे जीवन चलता है।
 जब तुमसे बातें होती है, अपनापन दिल को मिलता है। 

मन मेरा आवारा पंछी, हरदम नभ में उड़ता है।
 जैसे बिन पानी के मछली, वैसे यह तड़पता है।
 कैसे रख लूँ दिल पर पत्थर, उलझन और जटिलता है ।
जब तुमसे बातें होती है, अपनापन दिल को मिलता है। 

Sunday, 18 February 2018

दोहे '' आलू है पर्याप्त '' (राधा तिवारी)

आलू की महिमा
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सबजी में आलू रहा , पहले से सरताज ।
आलू के बिन है नहीं, बनता कोई काज।।

लौकी-कद्दू बन रहे,  या बनता हो साग।
चलता सबके साथ में, आलू का ही राग।।

आलू–पालक साग में, हो पनीर का साथ।
तड़का लहसुन का लगा, रहो चाटते हाथ।।

आलू आटे में मिला, रोटी का लो स्वाद ।
मिल जाएगा जीभ को, तब आनन्द अगाध।।

सब्जी के तो नाम पर, आलू है पर्याप्त ।
तरकारी का स्वाद सब, आलू में है व्याप्त।।

Sunday, 11 February 2018

दीपक सदा जलाया है (राधा तिवारी)


जब अपने मन मंदिर में 
अंधकार को पाया है 
तब-तब मैंने इस मन्दिर में 
दीपक सदा जलाया है 

इस ज्योति से रोशन हो जाये 
मेरे मन का कोना
छल-फरेब का मन से हट जाये 
सारा जादू-टोना 

प्यार से मैंने सबके संग में 
रिश्ता सदा निभाया है 
तब-तब मैंने इस मन्दिर में 
दीपक सदा जलाया है 

मत तोड़ो नन्हीं कलियों को फूल नहीं बन पायेंगी वो 
जन्मेगा जब कंस धरा पर बिजली सी बन छायेंगी वो 

देख कुदृष्टि हर नर की उसका पारा गरमाया है 
तब-तब मैंने इस मन्दिर में दीपक सदा जलाया है 

इस धरती पर शैतानी मानव का मुझको रूप दिखा 
दानव मानव कैसे बनते नारी ने सब दिया सिखा 

नारी को शक्ति तुम मानो इसने तो नर को जाया है 
तब-तब मैंने इस मन्दिर में दीपक सदा जलाया है 




Tuesday, 6 February 2018

गीत ''जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम''

परम श्रद्धेय गुरु जी डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई देते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि आप सदा हँसते-मुस्कुराते रहें और दीर्घायु हों। 
मैं राधा तिवारी' राधे गोपाल अपने मनोभावों को अपनी कविता के माध्यम से आपको समर्पित करती हूँ।.
 
4/02/2018
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जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम
क्या भरे जल सिंधु को रसधार दें हम

बाँटता खुशियाँ चतुर्दिक जो सभी को
उस चमन को कौन सा आहार दें हम
जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम

अनुसरण हम आपका करते रहे हैं
ज्ञान की वीणा उठा झंकार दे हम
जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम

जो वचन और कर्म का खुद देवता हो
आज नाविक को नयी पतवार दें हम
जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम

युग जिया जिन्दादिली के साथ जिसने
हृदय से शुभकामना मनुहार दें
हम जन्मदिन पर प्यार का उपहार दें हम
 राधा तिवारी (राधे गोपाल)
राधा तिवारी (राधेगोपाल)

Saturday, 20 January 2018

ग़ज़ल "चुपके चुपके"

याद आने लगे वो हमें चुपके चुपके 
दिल को लुभाने लगे  चुपके चुपके 

पल-पल की खबर रखते थे जो मेरी 
हमें यूं ही तडपाने लगे हैं चुपके-चुपके 

खता थी हमारी कि झुकते गये हम
तभी वो झुकाने लगे चुपके चुपके 

मेरी ख्वाहिशों अब तो खामोश सी हैं
गजल गुनगुनाने लगी चुपके चुपके 

वो वादे-इरादे में कैसे भुला दूँ
सताने लगे सब हमें चुपके चुपके
राधा तिवारी

Monday, 8 January 2018

कविता "ओ मेरे प्यारे बचपन" (राधा तिवारी)

ओ मेरे प्यारे बचपन तुमको मैं भूलूंगी कैसे
तुम साथ सदा मेरे रहते बसते हो मेरी धड़कन हो

मेरी तुतलाती बोली पर, माँ जाती थी बलिहारी
मेरी वह नटखट शोख-अदाएँ पापा को लगतीं प्यारी

कहाँ गए वो खेल खिलौने जो सखियों संग थी खेली
कंचे-गोटी, गिल्ली-डंडा लगती मानों एक पहेली

क्या मेरे प्यारे बचपन तू फिर से वापस आएगा
क्या वह बचपन की बातें फिर से तू याद दिखलायेगा

ऐ मेरे बचपन मैं तुझको कभी भूल नहीं पाऊँगी
पर अपने बच्चों में तुझको फिर से मैं पा जाऊँगी