छटा
निराली है पर्वत की, सूरज रोज
निकलता है।
चाहे शीत
लहर चली हो, हिम तो रोज पिघलता है ।।
नार दराती
ले हाथों में, रोज खेत में जाती हैं।
अपने श्रम की खुशबू से, वो खेतों को महकाती हैं।।
चल कर आओ तो
पहाड़ में, पीने को ठंडा पानी।
शीतलता
में भी धारी है, धरती ने चूनर धानी ।।
वातावरण
शुद्ध ही रहता, पर्वत के परिवेश का।
बदल नहीं
पाया है जीवन, अब तक पर्वत देश का।।
ददा और
दाज्यू हर नर है, दीदी प्यारी नार है।
पहाड़ के
हम रहने वाले, इस से हमको प्यार है।।
राधे कहती
लौट के आओ, बुला रहा हिम आलय है।
सुन्दर
घाटी और कंदरा, मंदिर और शिवालय है।।
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Sunday 22 July 2018
कविता "हिम तो रोज पिघलता है" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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