Thursday 19 July 2018

ग़ज़ल "मां की नजर" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

ग़ज़ल "मां की नजर"
कठिन लक्ष्य है और लम्बा सफर है
हमारा तो काबा हमारा ही घर है

दुआओं  में माँ की ये कैसा असर है
हमारा तो काबा हमारा ही घर है

 किए जुल्म दुनिया ने हम पर बहुत से
मगर फूल जैसी हमारी डगर है

अनजान राहों में हम जब भी  निकले
 जंगल में भी मिलता हमको नगर है

 दिखता नहीं है हमें कोई अपना
काफी है हम पर कि, मां की नजर है

 कांटो भरी भी अगर राह देखूं
राधे का कटता खुशी से सफर है

कठिन लक्ष्य है और लम्बा सफर है
हमारा तो काबा हमारा ही घर है

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