हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं
लिखने को दिल की बातें मजबूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपनी मशहुर हो रहे हैं
मैं तो सदा हूँ लिखती अच्छाई और बुराई
देते हैं दोस्त सारे हमको बहुत बधाई
लिखने को मन की बातें मजबूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं
रहते थे आज तक तो परिवार मिलके सारे
बिखरे हुए हैं देखो
अब गर्दिशों के मारे
रिश्ते सभी जहां
में बेनूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपनी
मशहूर हो रहे हैं
मुश्किलें अधिक बढ़ेंगी जब काम कुछ करोगे
बेनूर जिंदगी में कुछ रंग जब भरोगे
देखो खुशी के पल
अब मगरूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं
मां-बाप संंग रहे हम बनकर नवाब हरदम
हर पल मिले खजाने,
आँखे हुई न पुरनम
अब बोझ बढ़ रहा है मजदूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपनी
मशहूर हो रहे हैं
राधे को जिंदगी में सब कुछ मिला है प्यारे
एक आसमान भरकर तारे गगन के सारे
पाकर के अब कन्हैया
पुरनूर हो रहे हैं
हम लेखनी से अपने मशहूर हो रहे हैं
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Wednesday, 27 June 2018
ग़ज़ल " हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं" ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
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