चंचल विहग
डोल रहा चंचल विहग, ढूँढ रहा है छाँव ।
बैठ पेड़ की डाल पर, कौवे करते काँव।।
उड़ता पंख पसार कर, आसमान में बाज ।
लगता है मिल जायगा, उसको ईश्वर आज।।
नील गगन में उड़ रहा, खग होकर बेचैन।
रहता सुख की खोज में, वह पंछी दिन रैन।।
मन मेरा पुलकित हुआ, देख फूल के बागl
तितली भवरें भी करें, फूलों से अनुरागll
जीव जंतु आहत हुए, ताक रहे आकाश।
नजर ना आता जल कहीं, मनवा हुआ उदास।।
सूखे अपने खेत है, सूखे हैं मैदान।
बारिश को है तरसता, पूरा हिंदुस्तान।।
नदी सूख कर बन गए, उसमें छोटे ताल।
जल बिन जीवन सभी का, हो जाता विकराल।।
|
Showing posts with label दोहे " चंचल विहग" (राधातिवारी "राधेगोपाल"). Show all posts
Showing posts with label दोहे " चंचल विहग" (राधातिवारी "राधेगोपाल"). Show all posts
Wednesday, 20 June 2018
दोहे " चंचल विहग" (राधातिवारी "राधेगोपाल")
Subscribe to:
Posts (Atom)