Sunday 2 September 2018

ग़ज़ल "बचपना"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),



बचपना
जो महकना चाहते हैं उनको महकने दीजिए
बाग उपवन में सदा दिल को चहकने दीजिए

हो रही वर्षा छिपे हैं ताल में दादुर सभी
खेत और खलिहान में भी उनको मचलने दीजिए

 गिर रहे हैं आज बच्चे सब नशे की गर्त में
 जो संभलना चाहते हैं उनको संभलने दीजिए

बचपना ही तो जगत में है सवरने के लिए
 टल रही है गर जवानी तो उसको टलने दीजिए

 नींद में मदमस्त होकर सो रहे राधे सभी
 उन सभी के ख्वाब तो ऐसे ही पलने दीजिए



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