Wednesday, 25 October 2017

"वीर हिंदुस्तान के" (राधेगोपाल)

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बिछ गए हैं जो धरा पर वीर हिंदुस्तान के ।
गुनगुनाते हैं सभी अब हम गीत उनकी शान के ।।
अपनी मां का लाडला वह उसका अभिमान था ।
जी रही थी देखकर के देश का वरदान था।।
संकटमोचन बहना का उसको बहुत दुलारा था।
रक्षा कवच बना भगिनी का सारे जग से न्यारा था ।।
मांग भरी सिंदूर में जिसके उसके सिर का ताज था ।
तेरी खातिर जग को छोड़ा तू उसका सरताज था ।।
बिछ गए हैं जो धरा पर वीर हिंदुस्तान के ।
गुनगुनाते हैं सभी अब गीत उनकी शान के ।।
कहां गया वह मां का लाडला ?कहां बहना का अभिमान है?
कहां गया वह साज-श्रृंगार? कहां देश का सम्मान है?
दूर देखो उस धरा पर वह सो रहा है शान से ।
लड़ रहा था अब तक जो दुश्मन से अभिमान से।।
हे धरा तू लाज रख जो तुझ पर मिटने को तैयार है ।
हे धरा के वीर हम सबको तुझसे प्यार है।।
बिछ गए हैं जो धरा पर वीर हिंदुस्तान के ।
गुनगुनाते हैं सभी अब गीत उनकी शान के ।।
राधेगोपाल 


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