Sunday 27 October 2019

दोहे, कर सोलह श्रँगार " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

 कर सोलह श्रँगार

 बिंदिया कुमकुम से सदाचमक रहा है भाल।
 नथनी झूले नाक मेंगले स्वर्ण की माल।।

 कुंडल सजते कान मेंहोठ लाल ललचाय।
 गोरी खुद को आज तोदेख देख मुस्काए।।

 तन पर यौवन है चढ़ामन उसक इठलाय।
 खुद में गोरी सिमटतीजब साजन मिल जाय।।

 कंगन हाथों के कहेपिया सुनो ये बात।
 खनक रही क्यों चूड़ियाँ , जब होती है रात ।।

हौले से जब पग रखूं , पायल करती शोर।
 तक धड़कन को थाम करआती तेरी ओर।।

 नख में लाली है सजीबिछिया रहती मौन 
आंचल लहरा के कहेमेरे प्रियतम कौन।।

 मात-पिता की लाडलीप्रियतम का हूं प्यार।
 महल पिया के जाऊंगीकर सोलह श्रँगार।।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को     "भइया-दोयज पर्व"  (चर्चा अंक- 3503)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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