Thursday 16 May 2019

दोहे, " मिलता सदा सुकून।।" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")


मिलता सदा सुकून
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ध्यान सदा ही दीजिए, गर नाक से आए खून।
 दूब घास के स्वरस से, मिलता सदा सुकून।।

धरती में मिलते सदा, सबको ही भगवान।
 मात-पिता के रूप में, देते हैं वरदान।।

 दूषित अब होने लगा, वाणी वायु का रंग।
 सब की बदली चाल है, बदल गया है ढंग।।

 सूर्य अगर ढलता नहीं, नर होता हलकान।
 होती दिन की ही तरह, रातों की भी शान।।

 मुखपोथी पर हो गए, जिनके मित्र हजार।
 कैसे वह परिवार से, यहाँ  करेगा प्यार।। 

इंसा इंसा से करो, इंसा जैसा मेल।
 जग में रहना है नहीं, यहाँ  हंसी का खेल।।

 माँ  समझाती थी हमें, झूठ बोलना पाप।
 मोबाइल पर लोग अब, बढा रहे हैं ताप।।

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