Monday, 12 March 2018

गीतिका "धरती का श्रृंगार" (राधा तिवारी)

नई नवेली दुल्हन जैसा यह प्यारा संसार है
हँसी-ठिठोली इसमें देखी हमको इससे प्यार है

आंचल में फुलवारी लेकर आई बसंत बहार है
नई नवेली दुल्हन जैसा ही प्यारा संसार है

पग-पग घुंघरू जैसे झरने सदा करे झंकार हैं
पर्वत जैसा मुकुट शीश पर धरती का श्रृंगार है

भीनी भीनी गन्ध धरा की रहती इसके कण-कण में
निर्मल पावन नीर गंग का करता सबसे करता प्यार है

नवयौवन सूरज ले आता जड़-जंगल मैदानों में
भाँति-भाँति के रंग दिखाती राधे की मनुहार है

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