साहस से अपनी चले, राधा सीधी चाल l
सागर की लहरें सदा, लाती है भूचाल ll
जीवन के हर क्षेत्र , करती रही कमाल l
लेकिन दुनिया नारि पर, करती सदा सवाल ll
कदम जो नारी के बढे, दुनिया करे बवाल l
कौशल से वो काटती, जग के सारे जाल ll
कंधे से कंधा मिला , नारी करती काम l
नारी के तो भाग्य
में, नहीं लिखा आराम ll
प्यार और सद्भाव से , भरी हुई हर नार l
नारी ही संसार की , होती सिरजनहार ll
महिलाओं पर हो रहा, प्रतिदिन अत्याचार l
हो करके गंभीर तुम, करना जरा विचार ll
दुर्गा के जैसे
यहां , नारी के नव रूप l
कैसे भी हालात हो, बन जाती अनुरूप ll
नारी के दिल से कभी, करना मत खिलवाड़ l
नर को जीवनक्षेत्र
में, देती नार पछाड़ ll
नारी को देना सदा, कदम-कदम पर मान l
भूले से भी नारि का, करना मत अपमान ll
नारी का होता सदा, सुंदर सरल सुभाव l
नारी का करते रहो, मन से आदर भाव ll
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Thursday, 8 March 2018
दोहे "नारी के नव रूप" (राधा तिवारी)
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