Sunday, 18 February 2018

दोहे '' आलू है पर्याप्त '' (राधा तिवारी)

आलू की महिमा
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सबजी में आलू रहा , पहले से सरताज ।
आलू के बिन है नहीं, बनता कोई काज।।

लौकी-कद्दू बन रहे,  या बनता हो साग।
चलता सबके साथ में, आलू का ही राग।।

आलू–पालक साग में, हो पनीर का साथ।
तड़का लहसुन का लगा, रहो चाटते हाथ।।

आलू आटे में मिला, रोटी का लो स्वाद ।
मिल जाएगा जीभ को, तब आनन्द अगाध।।

सब्जी के तो नाम पर, आलू है पर्याप्त ।
तरकारी का स्वाद सब, आलू में है व्याप्त।।

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