Saturday, 20 January 2018

ग़ज़ल "चुपके चुपके"

याद आने लगे वो हमें चुपके चुपके 
दिल को लुभाने लगे  चुपके चुपके 

पल-पल की खबर रखते थे जो मेरी 
हमें यूं ही तडपाने लगे हैं चुपके-चुपके 

खता थी हमारी कि झुकते गये हम
तभी वो झुकाने लगे चुपके चुपके 

मेरी ख्वाहिशों अब तो खामोश सी हैं
गजल गुनगुनाने लगी चुपके चुपके 

वो वादे-इरादे में कैसे भुला दूँ
सताने लगे सब हमें चुपके चुपके
राधा तिवारी

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