फिर इस बार गाँव घरों में दीन दुखी भी रह लें अब खुशहाली में। मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में। वतन रहे आबाद हमारा घर-घर दीप जलाएँगे। क्रोध घृणा का तमस मिटेगा हम सब खुशियाँ पाएँगे। छप्पन भोग रहेंगे सुन लो फिर से अब हर थाली में। मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।। नहीं रहेगी रात अमावस धवल चांँदनी बिखरेगी। माटी के इन दीपों से तो धरती माता निखरेगी। चलो बहाए जले दीप को गंगा यमुना काली में। मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।। लक्ष्मी माता छम छम करके सबके घर में आएगी। धन दौलत की वर्षा होगी पीर सभी मिट जाएगी। बच्चों की किलकारी होगी घर गूँजेगा ताली में। मिट्टी वाले दिए जलेंगे फिर इस बार दिवाली में।। |
No comments:
Post a Comment