श्रम
श्रम की कीमत जानते,हैं जग में विद्वान।
बिना काम के तो यहाँ,मिलता कैसे ज्ञान।।1।।
खड़ा हुआ बाजार में, बिकता हूँ मैं रोज।
सूरज लेता है सदा, मजदूरों का ओज।।2।।
तन भूखा रहता मगर ,मन में रहती आस।
पेट भरेगा शाम को, करता हूँ विश्वास।।3।।
देखो मैं हूँ आज फिर, बिकने को तैयार।
चौराहे पर हूँ खड़ा, तुम आओ बाजार ।।4।।
मिले नहीं मुझको अगर, किसी रोज तो काम।
दुखी ह्रदय से जा रहा उस दिन मैं निज धाम।।5।।
बीवी पूछेगी मुझे, कितना लाए दाम।
फूटी किस्मत का नहीं, जिक्र करूँगा आम।।6।।
घर में जाकर देखते, बच्चे खाली हाथ।
रोज नहीं मजदूर का, ईश्वर देते साथ।।7।।
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Wednesday 13 May 2020
दोहे , श्रम " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
सार्थक दोहे , सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसुंदर दोहे आदरणीय दीदी
ReplyDeleteवाह। बहुत सुंदर।
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